अश्वगंधा
औषधीय गुण
अश्वगंधा की जड़ें औषधि में काम आती हैं।
अश्वगंधा क्षयरोग, दुर्बलता और गठिया में प्रयोग होती है। यह मूत्रल है तथा
इसमें स्वापक एवं अवरोधनाशक गुण भी हैं। जड़ों को पीसकर या घिसकर फोड़े,
जख्म और सूजन पर लगाते हैं
शोध/परीक्षण तथा अन्य सूचना
इस पौधे का प्रायः कुछ अन्य पौधों के साथ मिश्रण से आधुनिक यंत्रों द्वारा बनी
औषधियों का नवीनतम विधियों से औषधालयों में अनेक रोगियों पर सफल परीक्षण किया गया।
परीक्षणों द्वारा जड़ों एवं पत्तों के एंटीबायोटिक तथा एंटीबैक्टीरियल गुणों की पुष्टि हुई है।
इसकी मूल कई प्रकार के वातरोग, गुर्दे तथा मूत्राशय की पथरी में उपयोगी पाई गई है।
यह मानव शरीर के केंद्रीय नाड़ी तंत्र को संतुलित करती है।
अश्वगंधा में स्वापक तथा शरीर की ऐंठन में हितकारी गुण बताए गए हैं। यह अनिद्रा एवं मूर्छा में लाभदायक है।
वैज्ञानिक (लैटिन) नाम, कुल, अन्य नाम तथा विवरण
वैज्ञानिक नाम : वीदानिआ सोम्नीफेरा (Withania somnifera Dunal.)
(कुल- सोलेनेसिए)
: हिंदी-अश्वगंधा
कन्नड़-हिरेमद्दिनेगिड
गुजराती- आसुन, घोड़ा आसोड़, सांठियाना पोपटा
मलयालम- अमुक्किक्करम
अन्य नाम
वर्णन
यह एक छोटी मझोली झाड़ी होती है। कभी-कभी अश्वगंधा के पौधे 1.5 मी. तक
ऊंचे हो जाते हैं। इसके तने और शाखाओं पर सूक्ष्म ताराकम रोम होता है। पत्ते
लगभग 10 सेमी. तक लंबे, अंडाकार, रोमिल होते हैं। फूल केलई रंग के छोटे, लगभग
एक सेमी. लंबे होते हैं और पत्तों के कक्ष में छोटे गुच्छों में लगते हैं। फल छह मिमी.
व्यास के गोल, चिकने व लाल होते हैं। फल बाह्य दलपुंज के अंदर ढके रहते हैं।
प्राप्ति-स्थान
अश्वगंधा प्रायः भारत के शुष्क स्थानों में मिलता है। इसकी खेती भी की जाती है।
अन्य जातियां
अश्वगंधा के वंश का एक पौधा आकरी (वीदानिआ कोआगुलेंस- Withania
coagulens Dunal. पंजाबी-खमजीरा) भारत के उतर-पश्चिमी भाग में मिलता है।
इसके फल पाचन संबंधी तथा जिगर के विकारों में उपयोगी होते हैं।