1. अंगूरशफा

(बेल्लाडोन्ना)

औषधीय गुण

पौधे की जड़ों को छोड़कर अन्य सभी भाग सुखाकर औषधि में प्रयोग होते हैं, ये

बेल्लाडोन्ना कहलाते हैं। कुल क्षारीय तत्त्व पौधे के विकास की बढ़ोतरी (अर्थात् आयु)

पर निर्भर करते हैं। जब फूल खिले हुए हों उस समय कम तथा हरे फलों से युक्त होने

पर बहुत अधिक होते हैं। जड़ें भी औषधि में शामिल की जाती हैं।

पत्तों तथा भूमि के ऊपर के अन्य अंगों से प्राप्त औषधि पसीना बनने की क्रिया

को मंद करती है। यह आमाशय की तथा मुंह से लार पैदा करने वाली ग्रंथियों की

क्रिया भी मंद करती है। यह पेट के मरोड़ तथा ऐंठन जैसी अन्य अवस्थाओं में शांति

पहुंचाती है। इसमें तीव्र एंटीस्पास्मोडिक गुण होते हैं; यह दमा तथा कुकुर खांसी में भी

लाभप्रद है।

पौधे की जड़ों से प्राप्त औषधि में भी वही गुण होते हैं, जो पत्तों और शाखाओं से

प्राप्त औषधि में; किंतु जड़ों में कुछ विषैले तत्त्व बताए जाते हैं, और इसलिए जड़ों से

प्राप्त औषधि सेवन के बजाय गठिया, वातशूल (न्यूरेलजिया) तथा सूजन आदि पर

बाहरी लेप के काम आती है।

शोध/परीक्षण तथा अन्य सूचना

इस पौधे का प्रायः कुछ अन्य पौधों के साथ मिश्रण से आधुनिक यंत्रों द्वारा बनी

औषधियों का नवीनतम विधियों से औषधालयों में अनेक रोगियों पर सफल परीक्षण

किया गया।

इस पौधे में मादक गुण भी बताए गए हैं।

वैज्ञानिक (लैटिन) नाम, कुल, अन्य नाम तथा विवरण

वैज्ञानिक नाम : आट्रोपा आकूमिनाटा (Atropa acuminata Royleex Lindley)

(कुल- सोलानेसिए)

अन्य नाम: हिंदी, कश्मीरी- संग अंगूर

 

व्यापार कार्य में यह औषधि बेल्लाडोन्ना कहलाती है, यह नाम आट्रोपा वंश की

एक यूरोपीय जाति आट्रोपा बेल्लाडोन्ना पर आधारित है; इस जाति का भारत में

रोपण किया जाता है।

वर्णन

अंगूरशफा का पौधा लगभग 60-90 सेमी. ऊंचा और बहुवर्षीय होता है। इसके पत्ते

मटमैले हरे रंग के 7-15 सेमी. लंबे होते हैं। यह शीर्ष तथा आधार पर दोनों ओर

संकरे होते हैं। फूल लगभग 2.5 सेमी. लंबे, घंटाकार, पीले, भूरे-से रंग के होते हैं और

पत्तों के कक्ष में अकेले या दो साथ लगते हैं। फल सरस, 1.5 सेमी. व्यास के, गहरे

बैगनी रंग के या काले होते हैं।

प्राप्ति-स्थान

यह पौधा कश्मीर में 2,000-3,000 मी. ऊंचाई वाले स्थानों में होता है। इसकी खेती

भी की जाती है।

अन्य जातियां

अंगूरशफा के वंश की एक अन्य जाति आट्रोपा बेल्लाडोन्ना (Atropa belladoma

L.) यूरोप में होती है; यह भारत के पर्वतीय प्रदेश में उगाई जाती है। इसकी जड़ें

(जिन्हें बेल्लाडोन्ना रेडिक्स कहते हैं) तथा पत्ते (जिन्हें बेल्लाडोन्ना फोलिउम कहते हैं)

औषधि में प्रयोग होते हैं, ये पौष्टिक तथा शमक होते हैं। यह मरोड़ तथा ऐंठन में

लाभप्रद है। यह (एट्रोपीन की भांति) आंखों की पुतली को चौड़ा करती है।

बेल्लाडोन्ना से बनी अनेक औषधियां नेत्र रोगों के लिए मरहम, आंख में डालने की

दवा आदि बनाने के काम आती हैं। विषपान के कारण हुए कुछ प्रकार के विकारों को

दूर करने के लिए बेल्लाडोन्ना विषनाशक के रूप में प्रयोग किया जाता है