क्या भगवान विष्णु को कभी किसी ने
वृद्ध रूप में देखा है, वृद्ध विष्णु की कल्पना किसी
भी चित्रकार, कवि या लेखक को क्यों नही आई?
गि
उन्होंने समुद्र मंथन के बाद निकले हुए अमृत का
सेवन किया था। यदि ऐसा ही सदाबहार युवा,
किसी भी मनुष्य को रहना हो तो क्या रह सकता
है? उसको आज भी अमृत मिल सकता है। यदि
अमृत मिले तो मनुष्य भी सदाबहार रह सकता है। रि
प्राचीन काल में मिलने वाली दिव्य औषधियां ४
जिसका सुश्रुत ने उल्लेख किया है आजकल उनमें
से एक भी नहीं मिलती। तो क्या बुद्ध ने जैसे जीवन
का दर्शन किया था वैसा वृद्धत्व और मृत्यु निक्षित
एवं अनिवार्य है? यदि उत्तर हां में है तो आयुर्वेद
को शावत कैसे कहेंगे? उसमें कही बातें त्रिकाल
बाधित कैसे मानी जायेंगी? लेकिन आज भी अमृत
तुल्य गुणों वाली 'अमृता' उपलब्ध है। जैसा
उसका नाम है, वैसे ही उसके गुण हैं। मृत्यु होने
पर उसने विजय पायी है, इसलिए वह अमृता है।
आयुर्वेद के सिद्धान्त वृद्धि:समानः सर्वेषाम' के
अनुसार गुरु से गुरु द्रव्यों की और लघु से लघुद्रव्यों
की उत्पत्ति होती है, वैसे अमृता से अमृत्व की
उत्पत्ति होती है। नित्य युवा रहने के लिए अमृता
श्रेष्ठ है। अमृता को लोक भाषा में गिलोय कहते
हैं। यदि उसके मूल कट जाये तो भी जिन्दा रहते
हैं। अमृता का नित्य सेवन व्यक्ति को सदाबहार
रखता है। बुढ़ापा उससे कोसों दूर रहता है। गुणों
में शीतलता बढ़ाने का गुण होने से उसको
चन्द्रहासा नाम दिया गया है। शरीर में बुखार की
गर्मी हो, पित्त की गर्मी हो, एसीडिटी की गर्मी हो,
गर्मी या पित्त बढ़ जाने से खून नहीं बनता हो ऐसी
गर्मी हो, अलग अलग मागों से खून बहता हो
ऐसी गर्मी हो, हाथ-पैर के तलुओं में आंखों में
जलन होती हो, मल या मूत्र मार्ग में जलन रहती
हो, इन सबमें गिलोय उत्तम शीतलता पैदा करके
गर्मी को दूर करती है। खुद उष्ण होने पर वह गर्मी
को दूर करती है ऐसा विचित्र गुण होने पर उसे
आयुर्वेद में विचित्र प्रत्याया द्रव्य कहा है। हमेशा
हरी और ताजी गिलोयही उपयोग करना चाहिए।
गिलोय की डंडी में से निकलने वाला रस हरे रंग
का और कडुवा, चिकनापन लिए हुए होता है।
उसको कांच के बरतन में रखने पर आधे घण्टे के
बाद उसका सत्व नीचे जम जाता है। गिलोय का
सत्व श्वेत वर्ण का होता है। यह उत्तम ताकत देने
वाला और सिदोषनाशक है। गिलोय के काढ़े को
गरम करके बनाये हुए धन को संशमनी बोलते हैं।
सदा तरोताजा रहने के लिए रसायन विधि से
गिलोय के रस का या उसके सत्व का उपयोग
करना चाहिए।
रसायन विधि:
(१) ३से ७ दिन तक गिलोय के रस से
सिद्ध घी का सेवन वर्धमान क्रम से करें। २०.
४०-६०-८०-१००-१२० और १४० ग्राम
अमृताधूत सुबह दूध के साथ में लें। ७वें दिन से
अमृता तेल की मालिश करके अमृता के काढ़े से
वाष्पस्वेद लेकर ७-८वें ५वें और ९वें दिन
स्नेहन स्वेदन करें। ८वें दिन रात को दही और
उड़द का सेवन करें और ९वें दिन अभ्यंग और
स्वेदन के बाद सुबह में सूर्योदय के समय ३ लिटर
दूध देकर चरक में बताये हुए हरितक्यादियोग १०
ग्राम शहद के साथ में लें। उससे वमन और
विरेचन होकर कफ और पित्त का शोधन होता है।
उसके बाद पेया विलेपी अकृतयूष, कृतयूष
आदि क्रम से संसर्जन कम करके अगि बढ़ने के
बाद गिलोय के रस २ से ४ चम्मच देकर दूध और
चावल से भोजन करें। इस तरह १ से २ मास तक
अमृता का रस देकर रसायन प्रयोग करने से त्वचा
गत कुष्ठ जैसे असाध्यरोग, गठिया, रेनोड्स
डिसीज, स्वलेरोडर्मा, ल्यूकीमिया या हिमोफिलीया
जैसे रोगों में बहुत अच्छा लाभ मिलता है साथ ही
निरोगी व्यक्ति का सदाबहार दिखने का स्वप्न
। साकार होता है। उससे वली पलित, जोड़ों के
दर्द, ब्लडप्रेशर, हृदयरोग, अपचन, पांडुत्व,
। एसीडिटी, जैसी व्याधियां दूर होती हैं।
को
(२) यदि पंचकर्म न कर सकें तो १-२
दिन का लंघन करके ऊपर बताया हुआ प्रयोग कर
॥ सकते हैं।
(३) प्रतिदिन गिलोय से बना हुआ घी १
से २ चम्मच सुबह दूध के साथ में लें। इससे व्यक्ति
से युवा बना रहता है।
(४) गिलोय के तेल की मालिश करने से व्यक्ति में बुढ़ापे के लक्षण दूर रहते हैं।
(५) गिलोय का सत्व:-
नीम या आम के पेड़ पर चढ़ी हुई अच
के पकी हुई कम से कम ४ साल पुरानी एक अंगूठे
का जितनी मोटी गिलोय लाकर उसका ४-४- अंगुली
ने जैसा टुकड़ा कर दें। उसको पानी से साफ करके
कूटकर कई या स्टील के बरतन में ६ घण्टे तक
भिगोकर रखें। बाद में हाथ से खूब मसलकर
मिवसर में डाल के उसको पीसें और बाद में
दबाकर उसका रस अलग करें। उस पानी को
बरतन में रखकर बिना हिलाए रख छोड़ें। तथा
नीचे से धीरे से दूसरे बर्तन में निथार लें और नीचे
जमे हुए सत्व में फिर से दूसरा पानी डालकर पहले
की तरह रख दें। फिर से ऊपर का पानी निथार लें।
ऐसा २-३ बार करने से बिल्कुल चमकदार सफेद
रंग का सत्व अलग हो जाता है। उसको सुखाकर
एक कांच की शीशी में भर लें।
सेवनविधि:
गाय के धारोष्ण दूध में १० ग्राम शकर
डालकर १ से २ ग्राम गिलोय सत्व दें। जीर्ण ज्वर
में घी और शकर के साथ में या शहद और पीपर
के साथ में या गुड़ और काला जीरा के साथ में दें।
यदि शरीर में जलन होती हो तो जीरा और शकर
साथ में दें। प्रमेह में बिना शक्कर गाय के दूध में
दें। भोजन पर बहुत ही अरुचि हो गयी हो तो अनार
के रस के साथ में दें। क्षय या राजयक्ष्मा में घी-
शक्कर और शहद के साथ में दें। यदि पेशाब बूंद-
बूंद करके आता हो तो दूध के साथ में दें। प्रदर
में लोन के साथ में दें। इसका घी और शक्कर के
साथ नित्य सेवन करने से व्यक्ति सदाबहार रहता
है।
विविध रोगों में उपयोगः
(१) बुखारः
टाईफाइड, जीर्णज्वर और सभी प्रकार के
बुखार में संशमनी वटी २ से ५ गोली तक ३ बार
दें। टाईफाइड ठीक करना आजकल आधुनिक
औषधों के बस की बात नहीं रही। उसमें भोजन
बन्द करके केवल मुनक्का, अनार, सेव और पपीते
पर रोगी को रखकर संशमनी वटी देने से ७ से १०
दिन में रोग ठीक हो जाता है। यदि टाईफाइड,
मलेरिया, मेनीन्जाइटिस जैसे बुखार ठीक होने के
बाद शरीर में जीर्णज्वर रहता हो तो रोगी को
दूध+चावल पर रखके केवल संशमनी वटी देने से
उसका ठीक नहीं होने वाला बुखार अच्छा हो
जाता है। छोटे बच्चे के लिए यह निर्दोष औषध
है। उसको संशमनी वटी देने से बुखार नहीं आता
और बच्चा ठीक से बढ़ता है।
अमृतारिष्टः-
गिलोय और दशमूल जैसे औषधों से
निर्मित अमृतारिष्ट सभी प्रकार के बुखार को ठीक
करके भूख बढ़ाता है और शरीर में शक्ति और
स्फूर्ति लाता है।
(२) गठिया (गाउट) जैसे वातरक्त
के विविध विकार:-
गाउट, रेनोड्स डिसीज, बर्जर्स डिसीज
(टी.ए.ओ.) एस.एल.ई., स्वलेरोडर्मा, रुमेटोईड
आर्थराइटिस, आदि वातरक्त के जीर्ण और गम्भीर
प्रकार के वातरक्त में गिलोय, सबसे उत्तम औषध
है। उसका स्वरस के रूप में, काढ़े के रूप में, तेल
के रूप में घी के रूप में, वटी के रूप में, सत्व
निकालकर और चूर्ण के रूप में बीमारी ठीक होने
तक उपयोग कर सकते हैं। बाद में शरीर को नित्य
युवा रखने के लिए भी इसका सेवन ऐसे रोगियों
को करा सकते हैं जहां एलोपैथी में इसके लिए
कोई अच्छे औषध प्राप्त नहीं हैं, वहां मरीजों के
लिए यह आशीर्वाद रूप औषध है।
(३) त्वचा के रोग:-
लेप्रसी, सोरायसिस, लाइकन प्लेनस,
पेम्फीगस वल्गेरिस (विस्फोट), एक्सफोलिएटिच
डर्मेटाइटिस (विचर्चिका), दाद, बाल उड़ना,
गंजापन, पालित्य, आदि रोगों में ऊपर बताये सभी
योग का युक्तिपूर्वक उपयोग करें और ठीक से
पथ्यपालन करायें।
(४) कामला:
हिपेटाइटिस, ओष्स्ट्रक्टीव जोन्डिस में
शरीर बहुत ही दुर्बल हो गया हो तो रसायन विधि
से गिलोय का उपयोग करने से बहुत ही अच्छा
लाभ होता है। उसमें घी से स्नेहन न करायें।
(५) प्रमेहः-
प्रमेह में गिलोय-आंवले और हल्दी के
मिश्रण को श्रेष्ठ माना है। उससे विविध प्रकार के
प्रमेह और उसके उपद्रव ठीक होते हैं। प्रमेह के
कारण चमड़ी के रोग, नाड़ी संस्थान के रोग,
आंखों के रोग, किडनी के रोग होकर गंभीर
बीमारियां पैदा होती हैं। प्रमेह का रोगी वजन कम
होने से कमजोर हो जाता है इस स्थिति में और
प्रमेह की वजह से पैदा हुई राजयक्ष्मा (टी.वी.
तपेदिक) में गिलोय और गिलोय का सत्व अच्छा
औषध है। जुवेनाईल डायबिटीज में इन्स्युलीन के
साथ-साथ बच्चे को संशमनी वटी, गिलोय सत्व,
गिलोय का घी, गिलोय के तेल की मालिश करने
से बालक का सर्वागीण विकास होता है। बड़ी उम्र
वाले डायबिटीज के रोगी जो इन्स्युलीन पर निर्भर
न हो ऐसे रोगियों को भी गिलोय के सत्व और
त्रिवंग भस्म के सेवन से प्रमेह काबू में रहकर
सदाबहार रखकर रोगी जीवन व्यतीत कर सकता
है।
इस तरह गिलोय एक सरलता से मिलने
वाली अमृत तुल्य गुणों वाली, सदाबहार रखने
वाली औषधि है। कोई भी व्यक्ति इसका सरलता
से उपयोग कर सकता है।
Pankaj
18 June 2021