एब्रोटेनम

( Abrotanum)

[एक तरहकी लता के पत्तों का टिंचर]-कन्ध, हाथ, कलाई और

एड़ी में दर्द, गाँठे कड़ी, जकड़ी, वातके कारण दर्द ( फार्मिका ), शरीर काँपना,

निराशा, काम-काजले अनिच्छा, नींद न आना, पर्यायक्रमसे वात और बवासीर,

आमाशय (पेचिश), बहुत कमजोरीके साथ हेक्टिकज्वर (क्षय-ज्वर), बच्चोंका

एक तरहका हेक्टिक-ज्वर ( इन्फ्लुएञ्जाके बाद), मेटेसटेसिस (किसी रोगका

एक अङ्गसे दूसरेमें चला जाना ), बच्चोंका मैरास्मस (सुखण्डी : marasmus )

इत्यादि में इसका प्रयोग होता है, और ये ही इसके चरित्रगत लक्षण है। डॉ.

केण्टका कथन है-बच्चोंके नाकसे खून गिरना, नाभिसे रस-रक्त निकलना,

अण्डकोष का फूलना और उसके साथ ही देह सूखती चली जाये, तो यह विशेष

लाभदायक है। बच्चोंके मैरास्मस (सुखण्डी) के लिए, एबोटेनमके अलावा-

नेट्रम म्यूर, आयोडम, सार्सापैरिला, साइलिसिया, कैल्केरिया फास इत्यादि भी

फायदेमन्द दवाएँ हैं। इनके लक्षणोंका प्रभेद नीचे देखिये :-

सापैिरिला-वृद्ध मनुष्योंकी भाँति शरीरके चमड़ेमें सलवट पड़ जाना।

इसमें शरीर की अपेक्षा गर्दन अधिक पतली पड़ जाया करती है।

नेट्रम म्यूर-हमेशा बच्चा बहुत खाता हो, फिर भी उसका शरीर सूखता

ही जाय। इसमें गर्दनका पीछेवाला भाग अधिक पतला पड़ता है।

आयोडम-हमेशा ही भूख, खानेके लिए केवल रोया ही करना,

 

खाकर उठनेके बाद ही फिर खानेको माँगना। इसमें समूचा शरीर सूख जाता

है ( लेपिस एल्बा देखिये)।

एनोटेनम-समूची देह तो सूखती ही जाती है ; पर इसमें पेरकी तरफ

पतला पड़ जानेका भाव अधिक होता है ( यह लक्षण ट्युबरक्युलिनम में भी

है)। Wasting disease from mal-nutrition पोषणको कमीके कारण क्षय

करनेवाले रोग।

वात-कन्धा, हाथकी कलाई और पैरकी एँड़ीमें ( ankle ) बहुत तक-

लीफ शुदा वात होनेपर या प्रदाहवाले वातमें रोगवाली जगह फूलनेके पहले

किसी स्थानमें दर्द होनेपर और प्लुरिसी (फुस्फुसवेस्ट प्रदाह ) रोगमें-

एकोनाइट तथा ब्रायोनियाके व्यवहारके बाद कलेजा दबा रखनेकी तरह दर्द

और साथ ही साँस खींचनेमें कष्ट होता हो तो-एबोटेनमसे लाभ होता है

Metastatic rheumatism-रोगवाली आक्रान्त जगहसे वात कभी-कभी

वक्षमें चला जाता है (कॉचिकम अध्याय देखिए ), कमरमें दर्द-रेतोरज्जु

(स्पर्माटिक-कॉर्ड ) के भीतरसे दर्द जाता है, गाँठ कड़ी और जकड़ी रहा करती

हैं, रोगी लंगड़ा कर चलता है -एब्रोटेनम इसकी भी एक बढ़िया दवा है ।

पाकस्थलीकी बीमारी-भूख मजेकी लगनेपर भी शरीर दिनोंदिन

सूखता जाना, जो खाता हो वही अजीर्ण अवस्थामें मलके साथ निकल जाता

हो, पाकस्थलीमें काटने-फाड़नेकी तरह असह्य दर्द होता हो, कभी-कभी सड़ा

बदबूदार वमन भी होता हो, इसके अलावा-पेट फूलना, पाकस्थलीके भीतर

कड़े ढेलेकी तरह पदार्थका रहना, पर्यायक्रमसे कब्जियत और पतले दस्त आदि

लक्षणों में और वृद्धोंकी मन्दाग्निके साथ हुत्पिण्डकी गड़बड़ी में-एव्रोटेनमका

प्रयोग होता है।

बवासीर-बवास की बीमारीके साथ त्रिकास्थिमें ( sacrum ) दर्द,

लगातार पाखानेकी हाजत बनी रहना और वेग, रोगी बार-बार पाखाना जाता

हो पर पाखाना बहुत थोड़ा होता हो, सिर्फ खूनका स्राव होना ( साइमेक्स

अध्याय देखिए)।

सदृश वक्षस्थलकी बीमारीमें-एकोनाइट, ब्रायो, कॉल्चि । वातमें-एसिड बेञ्जो, ब्रायो। प्लुरिसिमें-एकोनाइट, ब्रायोनिया सुखण्डी में आयोडिन, नेट्रम-म्यूर।

वृद्धि-ठण्डी हवामें । हास-हिलने-डुलनेपर ।

क्रम-६,३० शक्ति।