अमलतास के फलों का गूदा कब्ज दूर करने में बहुत अच्छा है

अमलतास
(कास्सिआ)
औषधीय गुण
यद्यपि इस वृक्ष के सभी भागों में कुछ न कुछ औषधीय गुण बताए जाते हैं, परंतु
इसके फल बहुत उपयोगी हैं और भारत के मान्य औषध कोश में भी उनका उल्लेख
है। फल का गूदा, जिसे कास्सिआ-पल्प कहते हैं, प्रख्यात रेचक औषधि है। अधिक
मात्रा में सेवन करने से यह हानिकारक है और अत्यधिक पतले दस्त, मतली (मिचली)
तथा उदरशूल हो सकते हैं। प्रायः अकेली इस औषधि का सेवन नहीं किया जाता,
इसको सनाय के पत्तों में मिलाकर लेते हैं।
अन्य सूचना

पुरानी कब्ज दूर करने का अचूक नुस्खा

अधिक दिनों के कब्ज को दूर करने वाला प्रयोग
कई व्यक्तियों को कब्ज इतना परेशान करता है, कि कई-कई दिनों तक शौच नहीं जाते। ऐसे लोगों का यही कहना होता है कि कब्ज उनका पीछा ही नहीं छोड़ता। कई लोग विज्ञापनों से प्रसिद्धि पायी कब्ज नाशक औषधि का प्रयोग करके कब्ज दूर करते हैं, लेकिन कुछ दिन वाद फिर वही स्थिति।
दरअसल समझदारी इसी में हैं, कि कब्ज दूर करने के लिए हमें अपने आहार-विहार पर ध्यान देना
चाहिये साथ ही ऐसे योगासन करने चाहिए जिनसे पाचन तंत्र मजबूत बने ताकि खाया-पिया ठीक
तरह से पचता रहे । लगातार कब्जनाशक औषधियों पर निर्भर रहना बहुत हानि कारक हैं, इनके सेवन

ऋतु के अनुसार हमारा आहार-विहार कैसा हो ?

जीवन रक्षा के लिए आहार या भोजन
अनिवार्य है। शरीर रूपी गाड़ी को सुचारू रखने
के लिये भोजन रूपी तेल आवश्यक है। बिना
भोजन के हमारा शरीर न तो चल फिर सकता है
और ना ही अधिक दिनों तक जीवित रह सकता
है। परन्तु अगर हम भोजन जरूरत से अधिक मात्रा
में ग्रहण करने लगे या भोजन मे आवश्यक पौष्टिक
तत्व न हो या गलत प्रकृति का भोजन करें या
भोजन ढंग से न करें तो शरीर बीमार पड़ जाता है,
समय से पहले बूढ़ा हो जाता हैं और नाना प्रकार
की यातनाओं को सहते हुए अकाल मर जाता है।
अत: शरीर को स्वस्थ और जीवित रखने के लिए

अमरूद एक चमत्कारी फल है जानिए इसके खाने से क्या फायदे हो सकते हैं


अमरुद पाचन शक्ति ठीक करने वाला वीर्यवर्धक फल है। इसका प्रयोग सामान्य फल के रूप में तो किया ही जाता है, इसके साथ ही इसके पत्ते, फूल, बीज तथा अन्य भागों का उपयोग आयुर्वेदिक औषधियों के निर्माण में किया जाता है। कई मायनों में अमरुद सभी फलों में श्रेष्ठ फल है। यही कारण है कि इसे अमृत फल का नाम दिया गया है।

आयुर्वेद के अनुसार वात रोग क्या होते हैं और उनका क्या उपचार है ?


आयुर्वेद के मतानुसार रोगों के प्रमुख 
कारण तीन दोष होते हैं। वात-पित्त और कफ।
इनमें कोई भी दोष जब घट या बढ़ जाता है तो हं
शरीर में रोग हो जाता है और जब ये तीनों समान
अवस्था में रहते हैं तो शरीर निरोग रहता है। इन
तीनों में पित्त और कफ दोष तो वास्तव में लंगड़े 
हैं । वात दोष की प्ररेणा से ही ये रोग उत्पन्न करते
हैं इससे सिद्ध हुआ कि वात दोष इनमें प्रधान है।
वात को ही साधारण बोलचाल में बाय कहा जाता
है। इसके कारण होने वाले रोग शास्त्र में 80 माने
हैं जिसमें से कुछ प्रमुख रोगों का ही यहां वर्णन
किया जा रहा है।

ताड़ आसन या ताड़ासन


ताड़ासन- ताड़ासन को समस्थिति भी कहते हैं। ताड़ का अर्थ होता है पहाड़। ताड़ एक
प्रकार का लम्बा पेड़ भी होता है। पहाड़या ताड़ पेड़ की तरह स्थिर निश्चल सीधा खड़े रहना ही ताड़ासन कहलाता है। यह दो प्रकार से किया जाता है।

योग करते समय किन बातों का विशेष ध्यान रखें।

योगासन करते समय कुछ सावधानियाँ-
जगह- योगासन हवादार स्वच्छ व समतल होनी चाहिए। अगर कमरे के अंदर यदि योग कर रहे हैं तो सभी खिड़की दरवाजे खुले रहें विशेषकर ऐसी जगह का चयन करें जहां पर हवा का आवागमन सुचारू रूप से होता हो।
जगह पर कम्बल या चटाई बिछाकर करें। योगा मैट का प्रयोग काफी अच्छा रहता है क्योंकि उससे आपकी हाथ पैरों की ग्रिप बनी रहती है और आप आसनों को ठीक प्रकार कर पाते हैं।

एसीटिकम एसिडम (ACETICUM ACIDUM)


एसीटिकम एसिडम (ACETICUM ACIDUM)
(ग्लैशियल एसीटिक एसिड-सिरका या विनिगर)
-
यह औषधि अत्यधिक रक्ताल्पता जैसी स्थिति उत्पन्न कर देती है जिसके साथ कुछ
जलशोफज (dropsical) लक्षण, जबरदस्त कमजोरी, बार-बार मूर्छित होना, सांस फूलना
(dyspnoea), दुर्बल हृदय, वमन, अत्यधिक मूत्र एवं पसीना रहते हैं। शरीर के किसी भी
होती है, जिनकी पेशियाँ ढीली व थुलथुली होती है। शरीर की शक्ति में कमी होते जाना
भाग से रक्तस्राव होना। यह औषधि मुख्यत: पीले से (pale) दुर्बल व्यक्तियों में निर्देशित

ऐब्सीन्थियम (Absinthium)


ऐब्सीन्थियम
(Absinthium)
में
(Common Wormwood )-पौधा, उसके फूल और पत्तों से मूल-अब
तैयार होता है-मस्तिष्क, मज्जा ( medulla ) और मेरुदण्डमें रक्तकी अधि
कता ( कॉनजेस्शन ), मस्तिष्क में रक्तकी अधिकता की वजह से टाइफॉयड
ज्वरमें नींद न आना ( फेरिंगटन ), सदीं लगकर आँखोंमें प्रदाह ( आँख
आना ), यकृत-प्लीहा बढ़ी हुई मालूम होना-मानो यकृत फूल गया हो, पेट
बहुत वायु जमा होना, वायु-शूलका दर्द (wind colic ), बच्चोंकी बहुत
देरतक रहनेवाली अकड़न, मृगी, मन्दाग्नि (डिस्पेप्सिया ), हरित्पाण्डुरोग

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