ऐसा कहा जाता है की जब घर के सामने हो
अशोक
तो काहे का शोक
अशोक का अर्थ होता है पवित्र और
लाभकारी। यही गुण इस वृक्ष में भी हैं।
यह उत्तर प्रदेश का राजकीय वृक्ष भी है। ताम्र
वर्ण के नए पत्तों के कारण इसे ताम्रपल्लव
तो लाल रंग के पुष्पों के कारण हेमपुष्पा
भी कहते हैं। घर के बाहर उत्तर दिशा में
लगा अशोक का पेड़ सकारात्मक ऊर्जा
प्रदान करता है। इसमें कई औषधीय गुण
भी होते हैं। खासतौर पर स्त्रियों से संबंधित
रोगों में इसका पंचांग बहुपयोगी है। कोरोना
काल में सर्वाधिक बात रोग प्रतिरोधक
क्षमता की हो रही है। अशोक के पेड़ में
फ्लेवोनायड्स पाए जाते हैं। इसकी मौजूदगी
इसे एंटीमाइक्रोबियल बनाती है। इसलिए यह
बैक्टीरिया का संक्रमण दूर करने में उपयोगी
है। इसमें हल्की मात्रा में स्टेरायड भी पाया
जाता है। विशेषज्ञों का कहना है कि अपने
इस गुण के कारण यह कोरोना से लड़ाई
में मददगार साबित हो सकता है। अन्य कई
शारीरिक रोगों को ठीक करने की क्षमता भी
इसमें होती है, जिससे यह शरीर को स्वस्थ
रखकर इम्युनिटी को मजबूत करता है।
आसानी से होता है
औषधीय गुण
अशोक की छाल को सुखाकर औषधि में प्रयोग करते हैं।
यह मासिक धर्म के समय अत्यधिक रक्तस्राव को रोकती है, इसमें स्तंभक गुण
है। यह गर्भाशय को शांति पहुंचाती है। गर्भाशय के रक्तस्राव में अरगट (Ergot) के
बजाय इसका भी प्रयोग कर सकते हैं।
हाल में वृक्ष की छाल पर नाना प्रकार के परीक्षण करके यह ज्ञात करने का
प्रयत्न किया गया कि इनका गर्भाशय के रोगों में वास्तव में उपयोगी प्रभाव है
अथवा नहीं। फल संतोषजनक नहीं मिला। यह संभव है कि अशोक की छाल से
रोगियों को लाभ इसलिए होता है कि उसमें कुछ ऐसे तत्त्व हैं जिनका ज्ञान
वैज्ञानिकों को अभी नहीं है। अथवा यह भी संभव है कि जिन तत्त्वों में पृथक्-पृथक्
परीक्षण करने पर लाभ दिखाई नहीं दिया, वही तत्त्व छाल में एक साथ विद्यमान
होने पर लाभप्रद होते हैं।
अशोक के फूलों को पानी में पीसकर खूनी अतिसार में देते हैं। अशोक के बीज
मूत्र में शक्कर आदि जाने के रोग में उपयोगी बताते हैं।
उपयोग व फायदे
• अशोक का वृक्ष स्त्रियों से संबंधित
• रोगों में अत्यंत लाभदायक माना जाता
• है। इसका रस, पत्तियां और छाल
• अनियमित मासिक चक्र, मासिक
• चक्र के समय दर्द, सक्रिय अंडों की
• कमी, गर्भधारण में मुश्किल, गर्भाशय
• में एस्ट्रोजन हार्मोन की अधिकता से
• अधिक रक्तस्त्राव आदि समस्याओं को
• दूर करने में उपयोगी होती है।
• • पलेनोवायड्स की मौजूदगी और
एंटीआक्सीडेंट गुणों के कारण
चिकित्सक किडनी में पथरी होने पर
अशोक के बीज, छाल के चूर्ण का
उपयोग करने की सलाह देते हैं।
एंटी इंफ्लेमेटरी गुणों के कारण अशोक
के पत्तों और छाल का लेप लगाने से
सूजन कम होती है और दर्द में राहत
मिलती है।
•छाल का चूर्ण पेट के कीड़ों को मारने
•और अपच दूर करने में सहायक है।
•• डायरिया में अशोक के फूलों का जूस
फायदेमंद होता है।
• फूल और छाल पाचन क्रिया को ठीक
• कर बवासीर से राहत दिलाते हैं।
• • अशोक के फूलों में हाइपोग्लाइसेमिक
प्रभाव के कारण यह खून में इंसुलिन की
मात्रा बढ़ाकर ब्लड शुगर को नियंत्रित
करता है।
का होता
वैज्ञानिक (लैटिन) नाम, कुल, अन्य नाम तथा विवरण
वैज्ञानिक नाम : साराका असोका (Saraca asoca (Roxb.) De wild)
(अस्वीकृत नाम : साराका इंडिका)
(कुल-सीसलपीनिएसिए)
अन्य नाम
: हिंदी, बंगाली-अशोक
गुजराती- अशोपालव
तमिल-असोगम
उड़िया, मलयालम, मराठी, कन्नड़- अशोक
इस वृक्ष का नाम अशोक वाटिका, जहां रावण ने महारानी सीता को बंदी रखा

यह एक छोटा सदाहरित वृक्ष होता है। इसके पत्ते संयुक्त होते हैं। इनमें कई 7-25
सेमी. लंबे चीमड़ पत्रक होते हैं। पत्ते शाखाओं पर बहुत अधिक संख्या में और बने
लगते हैं, जिससे वृक्ष पर हरी चादर का आवरण-सा दिखता है। फूलों से चमकीले
नारंगी रंग के सहपत्र होते हैं, फूल बनके गुच्छों में आते हैं। फली 15-25 सेमी. लंबी
बचपटी होती है। उसमें कई बीज होते हैं।
दो प्रकार का होता है वृक्ष
प्रोफेसर एनके दूबे बताते हैं कि अशोक का वृक्ष दो प्रकार
का होता है। एक वह वृक्ष, जो आम के पेड़ के आकार का
होता है। इसे सीता अशोक भी
कहते हैं। इसके पत्ते आठ-नौ
इंच लंबे और दो-ढाई इंच
चौड़े होते हैं। यह भारत और
श्रीलंका में पाया जाता है।
इसकी दूसरी प्रजाति देवदार
की तरह लंबी होती है। इसे घरों के सामने सुंदरता के
लिए भी लगाया जाता है। इसके पत्ते आम के पत्तों की
तरह और फूल सफेद व पीले रंग के होते हैं। इसके फल
का रंग लाल होता है। यह भरपूर आक्सीजन देता है।
प्राप्ति-स्थान
अशोक के वृक्ष हिमालय के मध्य व पूर्वी भागों में तथा पूर्व एवं दक्षिण भारत में पाए जाते हैं। यह प्रायः उद्यानों व नगरों में सुंदर फूलों की शोभा के लिए लगाए जाते हैं।
जीवन काल
काशी हिंदू विश्वविद्यालय में वनस्पति
विज्ञान विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर एन के
दूबे बताते हैं कि अशोक बहुवर्षीय पौधों की श्रेणी में आता है।
यह अनुकूल परिस्थिति में लंबी अवधि तक जीवित
रहता है। सब ठीक रहा तो इसकी
उम्र 200 से 300 वर्ष तक होती है।